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बनारस ही क्यों?

smriti
smriti
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मीडिया अपने घंटों व्यतीत कर रहा है ये समझने में की भाजपा ने अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मेदवार नरेंद्र मोदी को बनारस से ही क्यों चुनाव लड़वाने की सोची .उनमें से ज्यादातर इस बात पर आ कर अटक जातें हैं चूँकि काशी हिंदू धर्म का केंद्र है इस लिए नरेन्द्र मोदी की हिंदुत्व वादी छवि को और ज्यादा पुख्ता कर एक ध्रुवीकरण की कोशिश चल रही है.वहीँ पार्टी के ज्यादातर लोग ये कहतें हैं की चूँकि काशी पूर्वांचल और बिहार पर अपना ख़ास प्रभाव रखती है इस लिए रणनीतिक योजना के तहत एक प्रचारक के रूप में मोदी की भूमिका का लाभ उठा कर इस क्षेत्र में अधिक से अधिक सीटें जीती जा सकें,इस लिए मोदी को यहाँ से उतारा गया है..
दोनों बातें आंशिक रूप से ही इस योजना का खुलासा करतीं है.वास्तविकता ये है की इस योजना को अमली जामा पहनाने में संघ और नरेंद्र मोदी की लम्बे समय तक चली विचार प्रक्रिया का योगदान है,वो प्रक्रिया जो महीनो पहले से चल रही थी.काशी कोई सम्प्रदाय विशेष की नगरी नहीं है बल्कि वो भारत की आध्यात्मिक सम्पदा का नाभि केंद्र है,उसे किसी एक धर्म के नाम में बांधना काशी के साथ अन्याय है…काशी आस्तिकों,नास्तिको,शाक्तों ,शैवों,,भागवतों,जैनो,बौद्धों के साथ साथ योगियों,वाममार्गियों,सिद्धों,और नाथों की नगरी है,काशी प्रकृति पूजक आर्यों के ब्रह्मवादी होने तक की यात्रा की साक्षी है..वेदों से लेकर वेदान्त तक चली एक लम्बी आध्यात्मिक और दार्शनिक यात्रा का पड़ाव,बहुदेव वाद और महादेव की उस पर प्राण प्रतिष्ठा का आयाम भी काशी से जुड़ा है.आर्य और आर्येत्तर धर्मों का मिलन स्थल भी काशी है.संगीत और नाट्य,कला और संस्कृति के केंद्र स्थल अलावा आधुनिक काल में बनारस हिन्दू विश्वविधालय की स्थापना और उसके लिए महामना मदन मोहन मालवीय द्वारा किया गया अथक संघर्ष ,उनके द्वारा हिन्दू महासभा की स्थापना और स्वंतंत्रता आंदोलन में अलीगढ मुस्लिम कॉलेज से उपजा द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत और उससे ताजा हुयी पुरानी यादें की जब सय्यद सालार मसूद ,गौरी,सिकंदर लोधी और औरंगजेब के समय बार बार काशी पे हमले हुए थे,काशी को एक वैचारिक संघर्ष की भूमि भी बनाते हैं.लेकिन ये सम्पूर्ण आकलन और दृश्य नहीं है!
इसे समझना हो तो मोदी के अपने पूर्वी और उत्तर पूर्वी भारत के प्रचार अभियान में दिए गए भाषणों पर गौर करना होगा,जब नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं में कहतें हैं की अगर भारत के मौजूदा स्वरूप को देखा जाए तो पश्चिम के हिस्से में तो तरक्की दिखती है लेकिन पूर्वी भाग अभी भी भी विकास की बाट जोह रहा है,तब काशी के चुनाव का एक नया आयाम सामने आता है और उसके भौगोलिक और आर्थिक महत्व का भी.ईसवी की आरम्भिक सदियों में बनारस भारत से होने वाले विदेशी व्यापार का महत्वपूर्ण स्थल था,बौद्ध जातकों में काशी के सेठों का खूब वर्णन मिलता है की किस प्रकार जल मार्ग का उपयोग करके वो पूर्वी एशिया के चंपा ,सुमात्रा,जावा,स्याम ,कोरिया प्रायद्वीप,मलय और आधुनिक इंडोनेशिया से व्यापार करते थे,अपने साथ वो भारत के आध्यात्म और संस्कृति का भी इन देशों में निर्यात करते थे, जिसके बूते बृहत्तर भारत का अस्तित्व आया और भारतीय व्यापार और धर्मों का बर्मा से लेकर सुदूर चीन और जापान तक विस्तार हुआ,ये भारत का स्वर्ण युग था!जिसके सहारे से भारत ने बगैर कोई आक्रमण करे सदियों तक एक बृहत्तर देश की कल्पना को साकार किया,जो उसके अपने आकार से कहीं ज्यादा बड़ा था….मोदी उस भारत को फिर से देख रहें हैं.नरसिम्हा राव सरकार के समय ही भारत ने अपनी लुक ईस्ट नीति को परवान चढ़ाना शुरू कर दिया था,ये नीति कुछ उतार चढ़ावों के साथ अब भी जारी है.लेकिन इसमें अभी और जोर शोर से काम करने की जरुरत है,पूर्वी व्यापारिक गलियारे का निर्माण और पूर्वांचल से लेकर पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के बंदरगाहों तक जल और थल दोनों प्रकार के मार्गों के निर्माण के बिना ये लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सकता ,मोदी इसी सम्भावना को पूरा करने के लिए बनारस आये है ताकि बनारस से लेकर पटना तक और पटना से लेकर गंगासागर तक एक पूर्वी गलियारे पे काम किया जा सके जिससे की भारत के ये पिछड़े इलाके विकास का नया इंजन बन कर उभरें और भविष्य में भारत अपेक्षित विकास दर प्राप्त कर सके, पूरे पूर्वी और उत्तर पूर्वी भारत में विकास की अपार संभावनाएं छिपीं हैं.
चाहे पर्यटन हो या दस्तकारी उद्योग,प्राकृतिक सम्पदा हो या प्रचुरता में उपलब्ध सस्ता श्रम ये सब मिल कर इस क्षेत्र में विकास के नए द्वार खोल सकतें हैं.बनारस से लेकर कलकत्ता और पुरी तक का ये इलाका अपने आप में असीम संभावनाओं वाला क्षेत्र है..जिसे तलाशने मोदी काशी आये हैं!दुनिया भर से काशी आने वाले पर्यटक खासकर पूर्वी एशिया से आने वाले धार्मिक पर्यटक अपने देशों में जाकर भारत के ब्रांड अम्बेस्डर की भूमिका अच्छे से निभा सकतें हैं अगर उन्हें यहाँ विकास और ढांचागत सुधार दिखाई देगा तो,जिस पर यहाँ की सरकारों ने दूरगामी सोच के अभाव में ध्यान नहीं दिया है!
बनारस का चयन बेहद सोच समझकर किया गया फैसला है जो वर्षों से यहाँ काबिज प्रगति विरोधी राजनीति के स्वरूप को तो बदलेगा ही बल्कि इस क्षेत्र में एक नए आर्थिक और व्यापारिक युग की शुरुआत भी करेगा!

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