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इसमें दो राय नहीं की मौजूदा सरकार जनता की अपेक्षाओं पे खरी नहीं उतरी और अब एक अलोकप्रिय सरकार की श्रेणी में खड़ी नजर आती है.आंतरिक और घरेलू राजनीति के मोर्चे पर ये एक विफल सरकार थी जो जनता से भावनात्मक रूप से जुड़ने में नाकाम रही…लेकिन ऐसा नहीं है की सब कुछ धुंधला ही है,कुछ मोर्चे ऐसे हैं जहाँ ये सरकार बड़ी कामयाबी का दावा कर सकती है,लेकिन लगता है मनमोहन सिंह पर पार्टी का दवाब है की वो अपने किये अच्छे कामों का श्रेय न लें क्योंकि ये कामयाबी उनकी व्यक्तिगत रही न की पार्टी और गठबंधन सरकार की!
विदेश नीति के मोर्चे पर इस सरकार ने कुछ बड़े काम किये जिसका श्रेय मनमोहन सिंह को बेशक़ मिलना चाहिए,जिस प्रकार उन्होंने चीन,रूस,ब्राजील और साउथ अफ्रीका के साथ मिलकर ब्रिक्स देशों का समूह खड़ा किया और भारत की भावी वैश्विक उपस्थिति का मजबूत खांचा खींचा वो काबिलेगौर है,ये सभी देश बेहद ताकतवर और उभरते हुए हैं और भविष्य में पश्चिमी देशों के गुट को संतुलित करने में बड़ी भूमिका निभा सकतें हैं,इन देशों ने अपने मुद्राकोष बनाने का जो खाका बनाया है वो आगे चलकर एक बड़ी आर्थिक-कूटनैतिक कामयाबी इन देशों को दिलाएगा!भारत ने इस दरम्यान अपनी लुक ईस्ट नीति को और आगे बढ़ाया और जापान ,थाईलैंड,वियतनाम और दक्षिण कोरिया समेत बर्मा से भी अपने राजनयिक और सामरिक सम्बन्धों को पुष्ट किया जो चीन की एशिया में बढ़ती ताकत और गाहे बगाहे होने वाले अमेरिकी राजनयिक हस्तक्षेप पे अंकुश का काम करेगा और भारत एशिया की राजनीति में केवल तमाशबीन की भूमिका नहीं निभाएगा ..ये बात अब स्थापित सत्य है!नेपाल और बांग्लादेश में पिछले दशक में बड़ी तेजी से उभरती भारत विरोधी भावनायों को भी इस सरकार ने अच्छे तरीके से राजनयिक कौशल से सम्हाला,और भारत विरोधी गुट इन देशों में अपने आप हाशिये पर चले गए!
चीन के साथ भी तमाम सीमा विवादों और उकसाने वाली कार्यवाहियों के बावजूद दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय सम्बन्धो को नया विस्तार दिया और भारत ने चीन के सामने ये स्पष्ट किया की उसका विरोध अमेरिका प्रायोजित नहीं है बल्कि वो भारत की राष्ट्रिय चिंता के अनुसार है और भारत किसी अमेरिकी खेमे में नहीं शामिल है..इसका सकारात्मक परिणाम निकला और चीन के आक्रामक तेवर शांत हुए.
दूसरी बड़ी कामयाबी इस सरकार की ये रही की भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए धन की कमी नहीं आयी और वो अबाध गति से चलता रहा और भारत अब दुनिया के विशिष्ट क्लब में शामिल है..ये भारतीय विज्ञान के लिए शुभ संकेत है!
बाकी घोटाले,भ्रष्टाचार,शक्ति के दो केंद्र,सरकार और एनएसी में खींचतान,संसद को संचालित न करा पाना ,तेलंगाना विवाद ,निर्णय न ले पाना ,कुछ अवसरों को ढीले प्रबंधन के कारन गँवा देना ..ऐसे तमाम मामले हैं जिनकी वजह से देश की जनता ऊबी है और मौजूदा सरकार शायद ही वापस आये!लेकिन मनमोहन सिंह के पास जो काम थे और जहाँ उन्हें पार्टी का हस्तक्षेप नहीं झेलना पड़ा वहाँ वो आर्थिक प्रबंधन और महंगाई के अलावा बाकी क्षत्रों में कुछ दूरदर्शी काम कर के जा रहें हैं जो भविष्य में विदेश नीति और तकनीकी के क्षेत्र में देश के बेहद काम आयेंगे!
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