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खेलो..जी भर के खेलो!!

smriti
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दिल्ली में गजब का ड्रामा चल रहा है, केजरीवाल और कांग्रेस की जुगलबंदी अगले लोकसभा चुनाव में देश पर भारी पड़ने वाली है ऐसा न मानने का अब कोई कारण नहीं दिखता.जब जब केजरी वाल की राजनैतिक स्थिति कमजोर पड़ती है वो केंद्र पर दिल्ली पुलिस के बहाने हमला करते हैं और पुलिस सोची समझी बेफ़कूफी दिखा कर उन्हें प्रचार के मुख्य केंद्र में ले आती है…ये प्रहसन पिछले १५ दिनों से बदस्तूर जारी है.दोनों की केजरीवाल की भी और कांग्रेस की भी बम-बम है.१२० करोड़ के देश पर १ करोड़ २० लाख वोट वाली दिल्ली नगरिया भारी है,देश का मीडिया बेवजह इसमें उलझने को मजबूर है और राजनीति भी.
दिल्ली के कानून मंत्री कानून का मखौल उड़ाते मुस्कराते आराम से यत्र तत्र सर्वस्त्र विचरण करते दिख रहे हैं तो मुख्यमंत्री भी अब कानून को ठेंगे पे रख मीडिया की सुर्ख़ियों में बखूबी बने हैं.न चुनाव के समय अब घोटालों की चर्चा है न देश के बाकी वोटरों के जन सरोकारों की.
जो हमले पहले केंद्र झेलता था उसे भी इस राजनीती ने सुरक्षा कवच मुहैय्या करा दिया है..अब आराम से लोकसभा की तैयारी करने का भरपूर अवसर है ,प्यादे मैदान में हैं, चाहे वो दिल्ली पुलिस हो या केजरीवाल इनकी जंग देखो और मस्त रहो ये नया आई.पी.एल है और आई पी .एल का पुराना रिवाज है मोदी को बाहर रखो चाहे ललित हों या नरेंद्र!
आने वाले फरवरी में ये आई.पी.एल फिर सजेगा चूँकि केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा का सत्र रामलीला मैदान में बुलाने की बात कही है ताकि जनता की मौजूदगी में जन-लोकपाल पास किया जाए,दिल्ली पुलिस ने भी बगैर देर लगाए एक बार फिर एक रोमांचक मैच की भूमिका ये कह कर तैयार कर दी की रामलीला मैदान में सत्र न बुलाया जाए.स्वाभाविक प्रश्न उठेगा की दिल्ली पुलिस कौन होती है जो यह तय करे विधानसभा का सत्र कहाँ बुलाया जाए और कहाँ नहीं?
संविधान का अनुच्छेद १७४ राज्यपाल को ये अधिकार देता है की वो ऐसा समय और स्थान तय कर सकते हैं, जो उन्हें ठीक लगता हो विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए,जाहिर सी बात है अगर दिल्ली केबिनेट प्रस्ताव भेजेगी तो दिल्ली के उप-राजयपाल या तो इसे मानेंगे या नहीं मानेंगे…दिल्ली पुलिस को ये हक़ नहीं है,फिर से टकराव होगा मीडिया का पीपली लाइव दिन-रात चलेगा ..और देश विकास के मुद्दे,महंगाई ,बेराजगारी,किसान हित, भ्रष्टाचार,केंद्र के रिपोर्ट कार्ड से दूर रहने को मजबूर हो बेबस ये तमाशा देखेगा ..कोई ये पूछने वाला नहीं है की दिल्ली का मुख्यमंत्री एक केंद्र सरकार के कानून को कैसे पास कर देगा!

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