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भ्रष्टाचार से शुरू साम्प्रदायिकता पे ख़त्म!

smriti
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दिल्ली के विधानसभा चुनावों में टीम केजरीवाल ने चुनावों में सबसे ज्यादा सीटें पायी पार्टी को धकिया कर राहुल गांधी के सहयोग से अपनी सरकार बनाने में कामयाबी पा ही ली,जिसके वो खासे तलब गार थे.जर्मनी की द्वितीय विश्वयद्ध से पहले की राजनीति की समझ रखने वालों की निगाह में ये एक शुद्ध फासीवादी या नाजी तरीका हो सकता है,लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों की दृष्टि में ये एक प्रमाणित धर्मनिरपेक्ष तरीका है.सरकार बनाने की प्रक्रिया में जनता भी हमेशा की तरह ,जैसे की आम आदमी पार्टी अपने संविधान की प्रस्तावना में जिक्र करती है की इस देश की जनता को ६० साल से छला जा रहा है,एक बार फिर छली गयी , फर्क कुछ भी न था यहाँ भी मुंसिफ ही कातिल निकला!
लेकिन सवाल ये है कि हर बार ऐसा क्यों होता है की भ्रष्टाचार को राजनेतिक महत्वाकाक्षा का हथियार बना कर सत्ता हथियाने के बाद भ्रष्टाचार विरोधी दल बाद में साम्प्रदायिकता को और फिर देश के सबसे बड़े विपक्षी दल को साम्प्रदायिक करार देकर अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताने लगतें हैं और फिर मुस्लिम वोटरों को रिझाने की जुगत में दिन -रात एक करते दिखतें हैं,बाद में खुद के कांग्रेस के साथ सम्बन्ध की वैधानिकता और औचित्य को सिद्ध करने की खातिर सर पे हरी पगड़ी या फिर टोपी पहन कर रोजा इफ्तार करते हुए फोटो खिंचाते हुए या फिर किसी मौलाना के दरवाजे पर घुटने टेकते दिखतें हैं, क्या नाकामियों को ढकने के लिए ये कवायद जरूरी है या फिर ये भारतीय राजनीति का स्थाई भाव है जिसे बदलने में सब नाकाम हैं और कमाल की बात ये होती है की शुरुआत में पूरी जनता और जनसाधारण की बात करने वाले दल बाद में केवल मुस्लिमों की माली और सामाजिक हालत पे घड़ियाली आंसू बहाते दिखते है इसके बावजूद की बेचारे भारतीय मुस्लिम इन दलों को बार -२ सत्ता की दहलीज तक पहुंचाते हैं और बदले में वही हालात पातें हैं जो उनके पहले से होते हैं?
जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से उपजे भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष के जनता पार्टी के तमाम धर्मयोद्धा चाहे वो लालू हों या नीतीश,मुलायम हों या शरद यादव…सबका राजनेतिक चरित्र यही दर्शाता है.वी.पी.सिंह के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उपजे जनता दल के तमाम नेताओं का भी यही किस्सा है..और अगर टीम केजरीवाल भी इसी राह पर चल पड़ी है तो ये विचारणीय प्रश्न है.इस पूरे प्रकरण में एक बात फिर बार-बार घटित होती है की कम्युनिस्ट भी इस बनती हुयी राजनैतिक खिचड़ी के इर्द-गिर्द मंडराते रहतें हैं और तीसरे मोर्चे का नारा बुलंद करते रहते हैं.वक़्त आने पर खुद भी कांग्रेस की इस पाकशाला में इस महाभोज का पूरा लुत्फ़ उठातें हैं!
२०१४ में होने वाले आम चुनावों में एक बार फिर यही किस्सा दोहराया जायेगा ,एक बार फिर कांग्रेस ध्रुवीकरण की साम्प्रदायिक राजनीति करेगी जिसे वो धर्म-निरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्धता बताएगी तमाम सेक्युलर अलम्बरदार एक सुर से शोर मचाएंगे की भ्रष्टाचार पे बाद में बात हो जायेगी फिलहाल तो देश को टूटने से बचाओ!साम्प्रदायिक शक्तियां कहीं सत्ता में न आ जाये! हे भगवान्!क्या होगा…. देश तो टूट जायेगा ,फासीवादी आ जायेंगे ..और एक पुराना रिकॉर्ड फिर से बजेगा!
……इस बार फिर से मुजफ्फर नगर और १० साल पहले गुजरात में हुए दंगों की आग पे मन ही मन प्रफुल्लित होते हुए चुनावी बिसात की चौसर खेली जायेगी, और हाँ, इस बार इस बिसात में एक नया प्यादा और आ गया जिसका नाम है आम आदमी पार्टी!!
न किसानो की बात होगी,न बेरोजगारी और न ही महंगाई और न ही बद से बदतर होते जा रहे आर्थिक हालातों की.देश की फेकट्रियों की चिमनी ठंडी पड़ी हैं,बॉयलर खामोश हैं चाहे ऑटोमोबाइल उद्योग हो या कपडा या फिर आधारभूत संरचना इन की बात न होगी ,उन वादों पे भी कोई बात नहीं होगी जिसमे कहा गया था लालटेन का जमाना गया अब परमाणु ऊर्जा से देश गुलजार होगा और कलावती मुस्कराएगी ….गाँव -२ में सडकों का जाल होगा देश के राजमार्ग विस्तार पाएंगे.ईरान से लेकर थाईलैंड तक रेल और सड़क यातायात के मार्फ़त व्यापार फलेगा फूलेगा!
एक बार फिर से सरकारी सब्सीडी की खैरात बंटेगी कोटा होगा परमिट होगा हर चीज सरकार के और उनके कारिंदों के हाथ होगी चाहे वो फसल हो या बिजली,पानी हो या सोना..कब आयात करना है और कब निर्यात सरकार ही तय करेगी……लगता है की २० साल तक अबाधित गति से चले आर्थिक सुधारों को वापस नेहरू युग की कसौटी में कसा जायेगा .
सच तो ये है, हमारी राजनीति को यही सुहाता है की गरीबी बरक़रार रहे और लोग राशन की दुकानों के आगे लाइन लगा कर जय समाजवाद का नारा बुलंद करते रहें… सुबह से शाम खाने पीने की चीजें बटोरने में लगे रहें और जब खाली हो तो दानवीर कर्ण बने खानदानी नेताओं की जय-जय कार करें और उनके गुलाबी गालों में अपनी जिंदगी की खूबसूरती तलाशें.किसान और उद्यमी दर- दर की ठोकर खाएं उत्पादक मारा जाये और खैरात बाँट कर राज करने की जुगत बैठाने वाला मौज उड़ाये.

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